गांव के एक छोटे से घर में राधा रहती थी। राधा विधवा थी और उसके दो बेटे थे—मोहन और सोहन। पति की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारी राधा के कंधों पर आ गई। आर्थिक हालत बहुत खराब थी। रोज़मर्रा के खर्च के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। लेकिन राधा का एक ही सपना था—उसके दोनों बेटे पढ़-लिखकर जीवन में सफल हों।
राधा सुबह से शाम तक मेहनत करती। खेतों में मजदूरी, लोगों के घर बर्तन धोना, कपड़े धोना—जो भी काम मिलता, वह कर लेती। कभी-कभी उसे सिर्फ दो वक्त का खाना ही मिलता, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। वह खुद भूखी रह जाती, पर अपने बेटों को पढ़ाई के लिए किताबें जरूर दिलाती।
मोहन और सोहन दोनों समझदार थे। वे जानते थे कि उनकी माँ कितनी मेहनत करती है। वे भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते और कभी शिकायत नहीं करते। घर में रोशनी के लिए बिजली नहीं थी, तो वे मिट्टी के दीये की रोशनी में पढ़ते। राधा ने कई बार सोचा कि बच्चों को पढ़ाना बंद कर दे और उन्हें काम पर लगा दे, ताकि घर का खर्च चल सके। लेकिन फिर उसका दिल नहीं मानता।
राधा ने गांव के स्कूल में दोनों को दाखिला दिलाया। मोहन बड़ा था और पढ़ाई में बहुत अच्छा था। उसने इंटर तक की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाने की ठानी। लेकिन शहर की पढ़ाई का खर्च उठाना आसान नहीं था। राधा ने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी और कुछ कर्ज भी लिया। मोहन ने भी पार्ट-टाइम नौकरी की ताकि माँ पर बोझ कम हो सके।
वक्त बीतता गया। मोहन ने ग्रेजुएशन के बाद एक प्रतियोगी परीक्षा दी। राधा और सोहन हर दिन मंदिर में उसके लिए दुआ करते। आखिरकार वह दिन आया जब मोहन का चयन सरकारी नौकरी में हो गया। खबर सुनते ही राधा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने भगवान को धन्यवाद दिया।
मोहन ने पहली तनख्वाह पाकर सबसे पहले माँ के पैरों में रख दी। उसने कहा—“माँ, ये सब आपकी मेहनत का फल है। आपने कभी हार नहीं मानी, तभी मैं यहां तक पहुंचा।” राधा ने दोनों बेटों को गले लगाया और कहा—“बेटा, अब सोहन को भी पढ़ाई में आगे बढ़ाना है। जब तक मैं जिंदा हूं, तुम्हारे सपनों के लिए मेहनत करती रहूंगी।”
यह कहानी उन सभी माँओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने बच्चों के लिए संघर्ष करती हैं। गरीबी कभी भी सपनों को नहीं रोक सकती, अगर हिम्मत और मेहनत हो।